Sunday, January 16, 2011

सूचना अधिकार का शुल्क बढ़ाने की वकालत करने वाले लोग इस कानून के दुश्मन: ओमप्रकाश केजरीवाल

वाराणसी, 16 जनवरी।  जब आरटीआई एक्ट बनाया जा रहा था तो इसमें किसी भी प्रकार का शुल्क न रखने का प्रावधान किया जा रहा था। मगर बाद में  एक टोकन मनी के रूप में 10 रूपये का शुल्क सिर्फ इसलिए रखा गया ताकि उसकी रसीद से ये पता चल जाए कि आवेदनकर्ता ने कब आवेदन दाखिल किया है। आरटीआई का शुल्क बढ़ाने की वकालत वो लोग करते हैं जो इस कानून के दुश्मन है। या फिर वो नहीं चाहते कि आम आदमी के हाथों में इतना बड़ा हथियार हो।
ये बातें महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में चल रहे दो दिवसीय सूचना का अधिकार-2005 के सामाजिक प्रभाव विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में  पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त ओम प्रकाश केजरीवाल ने बतौर मुख्य अतिथि कहीं। महामना मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान की ओर से आयोजित एवं यूजीसी द्वारा प्रायोजित इस संगोष्ठी के समापन सत्र को सम्बोधित करते हुए श्री केजरीवाल ने कहा कि लोग ये शिकायत करते हैं कि नौकरशाह सूचना नहीं देना चाहते। ऐसे लोगों को ये समझना चाहिए कि नौकरशाह का काम ही है सूचना देने में हीलाहवाली करना। लोग ये भी कहते हैं कि आरटीआई से भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता। ऐसे लोगों को एक्ट को ध्यान से पढ़ना चाहिए जिसमें साफ लिखा है कि इस कानून को बनाने का उद्देश्य भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का है। श्री केजरीवाला ने ये भी कहा कि लोग अब आरटीआई के दुरूपयोग की बात करते हैं। ऐसे लोगों से पूछा जाना चाहिए कि देश में ऐसा कौन सा कानून है जिसका दुरूपयोग नहीं हो रहा है। मगर सिर्फ यही एक कानून है जिसका सबसे ज्यादा सदुपयोग हो रहा है। लाखों लोग इस कानून के जरिये सशक्त हुए हैं।
उन्होंने ये भी कहा कि आरटीआई ऐसे लोगों के लिए ही बनी है जो आम जिंदगी में भ्रष्टाचार से रूबरू होते हैं। जैसे किसी का राशन कार्ड नहीं बन रहा, किसी का पासपोर्ट नहीं बन रहा है, किसी सड़क को बनाने में गुणवत्ता का ध्यान नहीं दिया गया। आरटीआई ऐसे भ्रष्टचार के मामलों में आम आदमी को लड़ने की शक्ति देता है। श्री केजरीवाल ने बताया कि इन दिनों ऐसे घटनाओं की काफी चर्चा है जिसमें सूचना मांगने वालों पर हमले हो रहे हैं। ऐसे ही लोगों को सहयोग, आत्मबल और सुरक्षा देने के लिए वाराणसी में काशी जन सूचना फाउण्डेशन की शुरूआत की है। इससे लोगों को जुड़ना चाहिए।
समारोह के विशिष्ट अतिथि नई दुनिया के यूपी हेड योगेश मिश्रा ने कहा कि आज सूचना अधिकार कानून के शुल्क में अनियमितता आ चुकी है। गृह मंत्रालय जहां 10 रूपये में सूचना दे रहा है वहीं राज्य सभा की सूचनाओं के लिए 250 रूपये शुल्क मांगा जा रहा है। जबकि हाई कोर्ट की सूचना प्राप्ति के समय व्यक्ति को 2500 रूपये तक शुल्क देना पड़ रहा है। ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि सरकारी मशीनरी नहीं चाहती कि लोगों के लिए सूचना आसान रहे। आज सूचना आयोग में ऐसे लोग बैठाये जा रहे हैं जो खुद दागदार हैं। इसपर हम सभी को बारीक निगाह रखनी होगी।
नई दुनिया के झारखण्ड हेड एवं आरटीआई एक्टिविस्ट विष्णु राजगढ़िया ने कहा कि अब तक नौकरशाह सिर्फ इसलिए हम पर हावी थी क्योंकि उनके पास कानूनी अधिकार के रूप में हथियार होते थे। मगर आरटीआई के रूप मंे अब आम आदमी को भी संविधान ने एक खतरनाक अधिकार दे दिया है तो नौकरशाह परेशान हैं। वो इस हथियार की धार को कुंद करना चाहते हैं। आम आदमी के साथ आरटीआई ने मीडिया को एक नया न्यूज सोर्स भी दिया है।
उत्तर प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता अशोक मेहता ने देश, समाज और मीडिया में भ्रष्टाचार के मामलों की विस्तार से चर्चा की। कहा, आरटीआई अभी एक ही पक्ष को कंट्रोल कर पा रहा है जबकि इसके दायरे में सब कुछ आना चाहिए।
बीएचयू पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 एच0ए0 आजमी ने कहा कि यदि हमारे पास सही सूचनाएं हो तो हम ज्यादा अच्छा निर्णय ले सकते हैं। जो सूचनाओं से दूर होता है, उसका नुकसान होता है। इतिहास भी इसका गवाह है। उन्होंने कहा कि कहीं-कहीं मीडिया भी स्वत सूचनाओं के रास्ते में रोड़ा बन रही है जो ठीक नहीं।
पी0टी0आई0 झारखण्ड के प्रमुख इंदु कांत दीक्षित ने नई दिल्ली की संस्था पीसीआरएफ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि सूचना आयेाग में सूचना न देने के मामलों में से सिर्फ 3 ़17 प्रतिशत मामलों में ही दोषी अधिकारियों पर पेनाल्टी लगाई गयी। क्या इसी तरह सूचना अधिकार का भला हो रहा है।
अध्यक्षता करते हुए प्रेस काउंसिल के सदस्य एवं जनमोर्चा के सम्पादक शीतला सिंह ने कहा कि यदि समाज से भ्रष्टाचार को मिटाना है तो सबसे पहले हमें खुद को सुधारना होगा। ऐसा होता है तो शायद हमें किसी कानून की जरूरत न पड़े।
प्रारंभ में संस्थान के निदेशक एवं संगोष्ठी के चेयरमैन प्रो0 ओम प्रकाश सिंह ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि दो दिन के इस सेमिनार में आठ राज्यों के 25 विश्वविद्यालयों के करीब 400 लोगों ने प्रतिभाग किया जिसमें 22 सोर्स परसन के रूप में आमंत्रित रहे। सेमिनार के लिए 130 शोध पत्र पहले ही प्राप्त हो चुके हैं जिनका प्रकाशन बाद में पत्रिका के रूप मंे किया जाएगा। समापन सत्र में प्रेस काउंसिल सदस्य सुमन गुप्ता भी मौजूद रहीं।
इससे पहले अंतिम दिन दो तकनीकी सत्रों का आयोजन भी हुआ। इसमें सूचना का अधिकार मीडिया एवं लोकतंत्र विषय पर आयोजित सत्र की अध्यक्षता महर्षि दयानंद वि0वि0 के प्रो0 हरीश कुमार ने की। मुख्य वक्ता भड़ास डाट काम के प्रधान सम्पादक यशवंत ने मीडिया के अमीरी और गरीबी के खाचे में बंटे होने की चर्चा की। सत्र के संयोजक डा. गोपाल सिंह तथा रिपोर्टिंग अवधेश यादव ने की। इस सत्र में डा. पुरूषोत्तम पाण्डेय, डा. प्रेरणा त्रिपाठी, मो0 जावेद, चेतना, डा. धीरज कांत अनुपम कुमार गुप्ता सहित डेढ़ दर्जन लोगों ने शोध पत्र पढ़े।
दूसरा सत्र सूचना का अधिकार उद्भव, विकास, मीडिया एवं एनजीओ विषय पर हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो0 वीरेन्द्र व्यास ने की। मुख्य वक्ता पद से डा0 रमेश त्रिपाठी ने आरटीआई के पक्ष और विपक्ष दोनों बिन्दुओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए साबित किया कि इस कानून में सकारात्मक चीजें ज्यादा हैं और नकारात्मक चीजें तुलना मंे काफी कम हैं। सत्र संयोजक डा. रमेश यादव रहे और रिपोर्टिंग मो0 फरियाद ने की। इस सत्र में डा. प्रमथेश पाण्डेय, स्वतंत्र प्रकाश, डा. विनोद सिंह, डा0 संजीव गुप्ता, श्याम भद्र शरण आदि ने शोध पत्र पढ़े।
                                                                                                                भवदीय
                                                                                                     ( प्रो.ओमप्रकाशसिंह)  

                                                                                                    निदेशक एवं चेयरमैन,
                                                                                                      राष्ट्रीय सेमिनार


                                                                  
                                                                                               

Saturday, January 15, 2011

सूचना का अधिकार 2005 के सामाजिक प्रभाव विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी






 
ग्रामीणों और महिलाओं तक नहीं पहुँच  सका  है      सूचना का अधिकार -वीरेन्द्र सक्सेना
उपशीर्षकः राज्य सूचना आयुक्त ने माना, 75 प्रतिशत मामलों में  नहीं मिलती है सूचना   
      वाराणसी, 15 जनवरी। सूचना अधिकार कानून को लागू हुये 5 साल का वक्त गुजर चुका है। इसके बावजूद भारत में इस महत्वपूर्ण एवं क्रान्तिकारी कानून के बारे में जागरूकता बेहद कम है। एक सर्वे के मुताबिक आज भी ग्रामीण जनसंख्या के 13 प्रतिशत लोग इस ही इस कानून के बारे में जानते है। शहरों में भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। शहरीय आबादी के 33 प्रतिशत लोग ही सूचना के अधिकार के बारे में जानकारी रखते है। कुछ जनसंख्या को देखे तो 26 प्रतिशत पुरुष ही आर.टी.आई. के बारे में जानते है। जबकि महिलाओं के बारे में जानकारी रखते है। कुछ जनसंख्या को देखे तो 20 प्रतिशत पुरुष ही आर.टी.आई. के बारे में जानते है। जबकि महिलाओं की स्थिति सबसे दयनीय है। सिर्फ 12 प्रतिशत महिलाएं ही इस कानून की जानकारी रखती है।       ये बातें महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में महामना मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान की ओर से आयोजित ‘‘सूचना का अधिकार 2005 के सामाजिक प्रभाव’’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य वक्ता राज्य सूचना आयुक्त श्री वीरेन्द्र सक्सेना ने कही। श्री वीरेन्द्र सक्सेना ने बताया कि सूचना अधिकार कानून का एक सच ये भी है कि 75 प्रतिशत मामलों में आवेदनकर्ता को सूचना नहीं मिल पाती। यह भी माना कि सूचना का अधिकार कानून के प्रभावी होने में जनसूचना अधिकारियों की भूमिका अच्छी नहीं। इसके पीछे वजह यह है कि जनसूचना अधिकारियों को इस कानून और उनकी जिम्मेदारियों के बारे में प्रभावी प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। व्यवस्था में यह भी कमी है कि छोटे अधिकारियों का जनसूचना अधिकारी की महत्वपूर्ण सौंप दी जाती है। श्री सक्सेना ने बड़े सहज ढ़ग से माना कि प्रथम अपीलीय अधिकारी के स्तर पर गड़बडी कम नहीं। 90 प्रतिशत प्रथम अपीली अधिकारी काम नहीं करते। वे या तो शिकायतों पर सही निर्णय नहीं देते या फिर जनसूचना अधिकारी की दलीलों को सही मान लेते है। यही वजह है कि सूचना आयोग में शिकायतों की भरमार बढ़ती जा रही है। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से माना कि सूचना आयोग वास्तव में सिर्फ 25 मामलों में न्याय कर पा रहा है। आयोग में 30 हजार से ज्यादा मामले लम्बित है। मगर जब इस कानून के प्रति जागयकता बढ़ेगी तो इन लम्बित मामलों की संख्या और बढ़ जाएगी। उन्होंने स्वीकार किया कि सूचना अधिकार कानून दण्ड के प्रावधान प्रभावी नहीं, शायद यही वजह है कि बहुत सारे लोग जुर्माना भरते से डरते नहीं।
       संगोष्ठी के मुख्य अतिथि इन्दरा गांधी केन्द्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के कुलपति प्रो. सी.डी. सिंह ने सूचना अधिकार कानून को देश का सबसे महत्वपूर्ण कानून माना। कहा सूचना का अधिकार कानून तब मजबूत कहा जायेगा जब भारत का प्रत्येक नागरिक इस अधिकार का प्रयोग करना प्रारंभ करेगा। उन्होंने कहा इस कानून में जहां भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करना शुरू किया है वही कुछ स्वार्थी लोगों ने इसे व्यवसाय बना लिया है। आज आरटीआई कानून के डर के कारण ही अधिकारी बच-बच कर कर काम कर रहे हैं। इससे सरकारी कार्यालयों में कुछ सुधार दिखने लगा है। उन्होंने कानून की कुछ कमियों का भी उल्लेख किया और कहा कि थर्ड पार्टी प्रावधान का फायदा अब अफसरशाह उठा रहे है। सूचना मांगने वाले भी सुरक्षित नहीं रहे। उन्होंने पूणे में एक सूचना अधिकार कार्यकर्ता के हत्या व दूसरे पर प्राणघातक हमले का उल्लेख भी किया। ये भी कहा कि इन सब के बावजूद सूचना के अधिकार ने आज आम आदमी को उन लोगों से लड़ने की शक्ति दी है जिनसे लडने के बारे में वो कभी सोच भी नहीं सकता था। विशिष्ट अतिथि के रूप में इंडिया टुडे के सह सम्पादक एवं सूचना अधिकार पर यूरोपियन के लोरेंजो नटाली प्रथम पुरस्कार प्राप्तकर्ता सूचना अधिकार कार्यकर्ता श्री श्यामलाल यादव ने विस्तारपूर्वक बताया कि आज सूचना अधिकार से मीडिया को कितनी शक्ति मिल गयी है। उन्होंने मीडिया के लोगों से इसका अधिक से अधिक उपयोग करने तथा भ्रष्ट नेताओं एवं नौकरशाहों को बेनकाब करने की अपील की। श्रीश्यामलाल ने ये भी बताया कि अब तक वो अकेले 2000 से ज्यादा आवेदन विभिन्न मंत्रालयों एवं कार्यालयों में दे चुके हैं। उन्हीं के आवेदन पर मिली सूचना का परिणाम था कि मंत्रियों और अफसरों के विदेश दौरों में हो रही फिजूलखर्ची का खुलासा हुआ। एलआईसी को भी बंद हो चुकी पाॅलसियों पर अपनी नीति बदलनी पड़ी। श्री श्यामलाल ने ये कहते हुए चुटकी ली कि कम से कम उन्हें सूचना आयोग की कार्यप्रणाली पर विश्वास नहीं है। ये भी कहा कि सूचना आयोग के लोग ही आज सूचना अधिकार के सबसे बड़े दुश्मन हैं।
      अन्य विशिष्ट अतिथि के रूप में पांचजन्य के सम्पादक बलदेव भाई शर्मा ने भी सूचना अधिकार पर अपने अनुभवों की चर्चा करते हुए सूचना अधिकार कानून 2005 भारत के सबसे बड़े क्रान्तिकारी कानून की संज्ञा दी। ये भी कहा कि देश में सिर्फ यही एक कानून है जो सरकारी मशीनरी को सामाजिक सरोकार पर मजबूर कर सकता है। डीडी न्यूज के प्रस्त्रोता अनिल दुबे ने कहा कि नागरिक सूचना अधिकार कानून को अपना दायित्व मानकर इसका उपयोग करे। उन्होंने ये भी माना कि भ्रष्ट नेता और नौकरशाह इस कानून की धार कमजोर करने के प्रयास में लगातार लगे हैं मगर यदि जनता जागरूक रही तो उनके मंसूबे पूरे नहीं हो पायेंगे।
      अध्यक्षता करते हुए महात्मा काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. अवध राम ने कहा कि आरटीआई कानून के फायदे तो हैं मगर ये भ्रष्टाचार समाप्त करने का प्रभावी हथियार नहीं बन सका है। ये भी ध्यान देने की जरूरत है कि कानून का उपयोग दूसरों को परेशान करने में न हो। जैसाकि अक्सर देखने में आता है। उन्होंने यहीं विश्वविद्यालय स्तर पर आरटीआई के जरिये परेशान करने के मामलों की चर्चा भी की।
     प्रारंभ में संस्थान के निदेशक एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी के चेयरमैंन प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने विषय स्थापना करते हुए बताया कि वाराणसी में सूचना के अधिकार पर ये अब तक का सबसे बड़ा सेमिनार है जिसमें 8 राज्यों के 25 विश्वविद्यालयों के अध्यापक, शोध छात्रों छात्रों के अलावा स्वयं सेवी संगठनों और मीडिया से जुड़े 250 से ज्यादा लोग प्रतिभाग कर रहे हैं। इस सेमिनार में 100 से ज्यादा रिसर्च पेपर भी पढ़े जाएंगे। संचालन श्री प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने तथा धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के डीन प्रो. राम मोहन पाठक ने किया। समारोह में भड़ास डाट काम के यशवंत सिंह, चित्रकूट विश्वविद्यालय के प्रो. वीरेन्द्र व्यास, रोहतक वि.वि. के प्रो. हरीश कुमार, पूर्वांचल वि.वि. अध्यापक संघ के अध्यक्ष डा. देवेन्द्र नाथ सिंह, बी.एच.यू. चिकित्सा विज्ञान संस्थान के वशिष्ठ नारायण सिंह भी मौजूद रहे।
    संगोष्ठी के दूसरे चरण में दो समानांतर सत्रों का आयोजन भी हुआ। इसमें प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रो. बी.आर. गुप्ता ने की। मुख्य वक्ता डा. आनंद प्रधान व संयोजक डा. गोविन्द जी पाण्डेय रहे। इस सत्र में सूचना का अधिकार एवं भ्रष्टाचार विषय पर डा. अमित सिंह, योगेन्द्र पाण्डेय, शाश्वत मिश्रा, संदीप कुमार राय, निशांत कुमार राय, जागृति प्रशांत कुमार अजय कुमार आदि ने शोध पत्र पढ़े। रिपोटिंग डा. कौशल कुमार पाण्डेय ने की।
द्वितीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रो. ए.के. आजमी ने की जबकि मुख्य वक्ता विभव कुमार एवं डा. संयोजक डा. दुर्गेश त्रिपाठी रहे। यहां सूचना का अधिकार एवं सामाजिक परिवर्तन विषय पर डा. विवेक कुमार सिंह, डा. अरविन्द, डा. राजेन्द्र सिंह, डा. धर्मेन्द्र पटेल, आशीमा सिंह गुरेजा, साधना श्रीवास्तव, शशांक शेखर चतुर्वेदी, जिनेश कुमार, दिग्विजय सिंह राठोर, आशीष त्रिपाठी ने शोध पत्र पढ़े। रिपोर्टिंग डा. प्रतिभा शर्मा ने की।
                                                                                                                                     भवदीय
                                                                                                                           प्रो. ओमप्रकाश सिंह
                                                                                                                           निदेशक एवं चेयरमैन,
                                                                                                                                राष्ट्रीय सेमिनार

सूचना का अधिकार 2005 के सामाजिक प्रभाव विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी

 
ग्रामीणों और महिलाओं तक नहीं पहुँच  सका  है       सूचना का अधिकार -वीरेन्द्र सक्सेनाउपशीर्षकः राज्य सूचना आयुक्त ने माना, 75 प्रतिशत मामलों में नहीं मिलती है सूचना       वाराणसी, 15 जनवरी। सूचना अधिकार कानून को लागू हुये 5 साल का वक्त गुजर चुका है। इसके बावजूद भारत में इस महत्वपूर्ण एवं क्रान्तिकारी कानून के बारे में जागरूकता बेहद कम है। एक सर्वे के मुताबिक आज भी ग्रामीण जनसंख्या के 13 प्रतिशत लोग इस ही इस कानून के बारे में जानते है। शहरों में भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। शहरीय आबादी के 33 प्रतिशत लोग ही सूचना के अधिकार के बारे में जानकारी रखते है। कुछ जनसंख्या को देखे तो 26 प्रतिशत पुरुष ही आर.टी.आई. के बारे में जानते है। जबकि महिलाओं के बारे में जानकारी रखते है। कुछ जनसंख्या को देखे तो 20 प्रतिशत पुरुष ही आर.टी.आई. के बारे में जानते है। जबकि महिलाओं की स्थिति सबसे दयनीय है। सिर्फ 12 प्रतिशत महिलाएं ही इस कानून की जानकारी रखती है।       ये बातें महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में महामना मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान की ओर से आयोजित ‘‘सूचना का अधिकार 2005 के सामाजिक प्रभाव’’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य वक्ता राज्य सूचना आयुक्त श्री वीरेन्द्र सक्सेना ने कही। श्री वीरेन्द्र सक्सेना ने बताया कि सूचना अधिकार कानून का एक सच ये भी है कि 75 प्रतिशत मामलों में आवेदनकर्ता को सूचना नहीं मिल पाती। यह भी माना कि सूचना का अधिकार कानून के प्रभावी होने में जनसूचना अधिकारियों की भूमिका अच्छी नहीं। इसके पीछे वजह यह है कि जनसूचना अधिकारियों को इस कानून और उनकी जिम्मेदारियों के बारे में प्रभावी प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। व्यवस्था में यह भी कमी है कि छोटे अधिकारियों का जनसूचना अधिकारी की महत्वपूर्ण सौंप दी जाती है। श्री सक्सेना ने बड़े सहज ढ़ग से माना कि प्रथम अपीलीय अधिकारी के स्तर पर गड़बडी कम नहीं। 90 प्रतिशत प्रथम अपीली अधिकारी काम नहीं करते। वे या तो शिकायतों पर सही निर्णय नहीं देते या फिर जनसूचना अधिकारी की दलीलों को सही मान लेते है। यही वजह है कि सूचना आयोग में शिकायतों की भरमार बढ़ती जा रही है। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से माना कि सूचना आयोग वास्तव में सिर्फ 25 मामलों में न्याय कर पा रहा है। आयोग में 30 हजार से ज्यादा मामले लम्बित है। मगर जब इस कानून के प्रति जागयकता बढ़ेगी तो इन लम्बित मामलों की संख्या और बढ़ जाएगी। उन्होंने स्वीकार किया कि सूचना अधिकार कानून दण्ड के प्रावधान प्रभावी नहीं, शायद यही वजह है कि बहुत सारे लोग जुर्माना भरते से डरते नहीं।
       संगोष्ठी के मुख्य अतिथि इन्दरा गांधी केन्द्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के कुलपति प्रो. सी.डी. सिंह ने सूचना अधिकार कानून को देश का सबसे महत्वपूर्ण कानून माना। कहा सूचना का अधिकार कानून तब मजबूत कहा जायेगा जब भारत का प्रत्येक नागरिक इस अधिकार का प्रयोग करना प्रारंभ करेगा। उन्होंने कहा इस कानून में जहां भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करना शुरू किया है वही कुछ स्वार्थी लोगों ने इसे व्यवसाय बना लिया है। आज आरटीआई कानून के डर के कारण ही अधिकारी बच-बच कर कर काम कर रहे हैं। इससे सरकारी कार्यालयों में कुछ सुधार दिखने लगा है। उन्होंने कानून की कुछ कमियों का भी उल्लेख किया और कहा कि थर्ड पार्टी प्रावधान का फायदा अब अफसरशाह उठा रहे है। सूचना मांगने वाले भी सुरक्षित नहीं रहे। उन्होंने पूणे में एक सूचना अधिकार कार्यकर्ता के हत्या व दूसरे पर प्राणघातक हमले का उल्लेख भी किया। ये भी कहा कि इन सब के बावजूद सूचना के अधिकार ने आज आम आदमी को उन लोगों से लड़ने की शक्ति दी है जिनसे लडने के बारे में वो कभी सोच भी नहीं सकता था। विशिष्ट अतिथि के रूप में इंडिया टुडे के सह सम्पादक एवं सूचना अधिकार पर यूरोपियन के लोरेंजो नटाली प्रथम पुरस्कार प्राप्तकर्ता सूचना अधिकार कार्यकर्ता श्री श्यामलाल यादव ने विस्तारपूर्वक बताया कि आज सूचना अधिकार से मीडिया को कितनी शक्ति मिल गयी है। उन्होंने मीडिया के लोगों से इसका अधिक से अधिक उपयोग करने तथा भ्रष्ट नेताओं एवं नौकरशाहों को बेनकाब करने की अपील की। श्रीश्यामलाल ने ये भी बताया कि अब तक वो अकेले 2000 से ज्यादा आवेदन विभिन्न मंत्रालयों एवं कार्यालयों में दे चुके हैं। उन्हीं के आवेदन पर मिली सूचना का परिणाम था कि मंत्रियों और अफसरों के विदेश दौरों में हो रही फिजूलखर्ची का खुलासा हुआ। एलआईसी को भी बंद हो चुकी पाॅलसियों पर अपनी नीति बदलनी पड़ी। श्री श्यामलाल ने ये कहते हुए चुटकी ली कि कम से कम उन्हें सूचना आयोग की कार्यप्रणाली पर विश्वास नहीं है। ये भी कहा कि सूचना आयोग के लोग ही आज सूचना अधिकार के सबसे बड़े दुश्मन हैं।
      अन्य विशिष्ट अतिथि के रूप में पांचजन्य के सम्पादक बलदेव भाई शर्मा ने भी सूचना अधिकार पर अपने अनुभवों की चर्चा करते हुए सूचना अधिकार कानून 2005 भारत के सबसे बड़े क्रान्तिकारी कानून की संज्ञा दी। ये भी कहा कि देश में सिर्फ यही एक कानून है जो सरकारी मशीनरी को सामाजिक सरोकार पर मजबूर कर सकता है। डीडी न्यूज के प्रस्त्रोता अनिल दुबे ने कहा कि नागरिक सूचना अधिकार कानून को अपना दायित्व मानकर इसका उपयोग करे। उन्होंने ये भी माना कि भ्रष्ट नेता और नौकरशाह इस कानून की धार कमजोर करने के प्रयास में लगातार लगे हैं मगर यदि जनता जागरूक रही तो उनके मंसूबे पूरे नहीं हो पायेंगे।
      अध्यक्षता करते हुए महात्मा काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. अवध राम ने कहा कि आरटीआई कानून के फायदे तो हैं मगर ये भ्रष्टाचार समाप्त करने का प्रभावी हथियार नहीं बन सका है। ये भी ध्यान देने की जरूरत है कि कानून का उपयोग दूसरों को परेशान करने में न हो। जैसाकि अक्सर देखने में आता है। उन्होंने यहीं विश्वविद्यालय स्तर पर आरटीआई के जरिये परेशान करने के मामलों की चर्चा भी की।
     प्रारंभ में संस्थान के निदेशक एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी के चेयरमैंन प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने विषय स्थापना करते हुए बताया कि वाराणसी में सूचना के अधिकार पर ये अब तक का सबसे बड़ा सेमिनार है जिसमें 8 राज्यों के 25 विश्वविद्यालयों के अध्यापक, शोध छात्रों छात्रों के अलावा स्वयं सेवी संगठनों और मीडिया से जुड़े 250 से ज्यादा लोग प्रतिभाग कर रहे हैं। इस सेमिनार में 100 से ज्यादा रिसर्च पेपर भी पढ़े जाएंगे। संचालन श्री प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने तथा धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के डीन प्रो. राम मोहन पाठक ने किया। समारोह में भड़ास डाट काम के यशवंत सिंह, चित्रकूट विश्वविद्यालय के प्रो. वीरेन्द्र व्यास, रोहतक वि.वि. के प्रो. हरीश कुमार, पूर्वांचल वि.वि. अध्यापक संघ के अध्यक्ष डा. देवेन्द्र नाथ सिंह, बी.एच.यू. चिकित्सा विज्ञान संस्थान के वशिष्ठ नारायण सिंह भी मौजूद रहे।
    संगोष्ठी के दूसरे चरण में दो समानांतर सत्रों का आयोजन भी हुआ। इसमें प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रो. बी.आर. गुप्ता ने की। मुख्य वक्ता डा. आनंद प्रधान व संयोजक डा. गोविन्द जी पाण्डेय रहे। इस सत्र में सूचना का अधिकार एवं भ्रष्टाचार विषय पर डा. अमित सिंह, योगेन्द्र पाण्डेय, शाश्वत मिश्रा, संदीप कुमार राय, निशांत कुमार राय, जागृति प्रशांत कुमार अजय कुमार आदि ने शोध पत्र पढ़े। रिपोटिंग डा. कौशल कुमार पाण्डेय ने की।
द्वितीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रो. ए.के. आजमी ने की जबकि मुख्य वक्ता विभव कुमार एवं डा. संयोजक डा. दुर्गेश त्रिपाठी रहे। यहां सूचना का अधिकार एवं सामाजिक परिवर्तन विषय पर डा. विवेक कुमार सिंह, डा. अरविन्द, डा. राजेन्द्र सिंह, डा. धर्मेन्द्र पटेल, आशीमा सिंह गुरेजा, साधना श्रीवास्तव, शशांक शेखर चतुर्वेदी, जिनेश कुमार, दिग्विजय सिंह राठोर, आशीष त्रिपाठी ने शोध पत्र पढ़े। रिपोर्टिंग डा. प्रतिभा शर्मा ने की।
                                                                                                                                     भवदीय
                                                                                                                           प्रो. ओमप्रकाश सिंह
                                                                                                                           निदेशक एवं चेयरमैन,
                                                                                                                                राष्ट्रीय सेमिनार

Monday, January 3, 2011


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History of Mahatma Gandhi Kashi Vidyapith

FOUNDATION :   Kashi Vidyapith having present nomenclature since 1995 as Mahatma Gandhi Kashi Vidyapith has,in fact been the action field of Indian National Movement as also a place of pilgrimage of Indian Socialist Movement.Founding resolution of "RASHTRA RATNA"Babu Shiva Prasad Gupt,inspiration of the "FATHER OF THE NATION" Mahatma Gandhi and brilliance of "BHARAT RATNA" Dr.Bhagwan Das were jointly responsible for the birth of this national educational institution.It was inaugurated by Mahatma Gandhi during the Non-Cooperation movement of the freedom struggle;on the auspicious occasion of Basant Panchami on February 10,1921.
BACKGROUND :Mahatma Gandhi Kashi Vidyapith owes its birth to the educational ,cultural & political aspiration of pre-independence India. The early period of this institution pulsated with the National freedom struggle.The teaching faculty of this institution provided original dimensions to the concept and movement of Indian Socialism . After seeing an educational institution in Japan during his visit to that country in 1913-14, Babu Shiva Prasad Gupt drew inspiration to establish an institution in India, free from goverment aid or interference.The boycott of government-aided educational institutions during the Non-Cooperation movement coupled with Mahatma Gandhi's programme of National Education exerted a great deal of influence on Babu Shiva Prasad Gupt. As a consequence the Vidyapith came into being. Students joining Mahatma Gandhi's boycott call took admission in the Vidyapith. "Bharat Ratna", Babu Shiva Prasad Gupt established the "Har Prasad Smarak Nidhi" in the memory of his deceased brother,for the operation of the Vidyapith,which subsequently proved to be a fertile nursery of National Freedom movement activities.
Bharat Ratna Dr.Bhagwan Das was the first Vice-chancellor of Kashi Vidyapith. Great persons like Mahatma Gandhi, Dr. Bhagwan Das, Lala Lajpat Rai, Jamuna Lal Bajaj, Pt. Jawahar Lal Nehru, Babu Shiva Prasad Gupt, Acharya Narendra Dev, Krishna Kant Malviya, P.D.Tandon were associated with the first board of Management of Kashi Vidyapith. The founding ceremomy of the Vidyapith reverberated with the recital of holy Vedic Mantras as well as excerpts from the holy Quran in the presence of Educationists, learned persons and Nationalists such as Pandit Motilal Nehru, Maulana Mohammed Ali and Maulana Abul Kalam Azad. In the illustrious tradition of students & graduates of Kashi Vidyapith, names of persons like Chandra Shekhar Azad, Lal Bahadur Shastri, Pt. Kamlapati Tripathi, Prof. Raja Ram Shastri, B.V.Keskar A.R.Shastri, Mananathnath Gupt, Pranavesh Chatterjee, T.N.Singh, Harinath Shastri, Bhola Paswan Shastri & Ram Krishna Hegde deserve special mentoin.
Established in the pre-independence era with the resolution to keep the institution away from government recognition and grants the Vidyapith was accorded the status of "Deemed University" by the U.G.C. in the year 1963.This epoch making event started a new chapter in the history of the institution.Babu Sampurnanand was appointed as the Chancellor and Acharya Birbal Singh as Vice-chancellor. As the chief minister of U.P., Pt.Kamlapati Tripathi initiated a state government resolution to make his alma mater a statutory university.On 15th January 1974,his ambition fructified. At this point of time, Prof. Raghukul Tilak was the Vice-chancellor & the Governor of U.P became the Chancellor in accordance with the U.P.University Act. At present the M.G.Kashi Vidyapith is flourishing under the able leadership of Vice-chancellor, Dr Prithvish Nag.
OBJECTIVES :Commitment to democracy,equality of all religions ,staunch support to nationalism and to Indian socialism & enrichment of Hindi as a national language has been throughout a praiseworthy tradition of the Vidyapith . As per the declaration contained in the founding resolution of the Vidyapith, the objectives of this national educational institution are as follows:

To strive to enhance and propagate:

  • The development of Indian civilization & culture based on spiritualism.
  • Homogeneous intermingling of all the sections of Indian society.
  • Coordination among different thoughts and cultures.
  • The notion of independence and patriotism along with the feeling of brotherhood & the urge to serve mankind.
  • Ancient and modern development in the fields of various disciplines of learning , sculpture , science , technology etc.